स्त्री को ख़ुद ही सशक्त होना पड़ेगा : डॉ सुनीता
नवल शर्मा।
Ananya soch
अनन्य सोच। आलोचक और लेखक डॉ सुनीता का कहना है कि “सशक्तिकरण का पहला कदम शिक्षा है , इसी से सर्वांगीण विकास होता है। आज की लड़कियाँ हर काम कर रही है जो कभी केवल लड़के करते थे।” उन्होंने कहा कि लड़कियों को अधिक झुकने की भी ज़रूरत नहीं है सिर्फ़ मनुष्यत्ता के पक्ष के निर्णय के लिए जितना आवश्यक है उतना ही झुकना है”
वे आज जयपुर में parishkar college में राजस्थान प्रगतिशील लेखक संघ (Rajasthan Progressive Writers Association) द्वारा आयोजित “स्त्री सशक्तीकरण और साहित्य” विषयक संगोष्ठी में मुख्य अतिथि थी. उनका कहना था कि “सच्चे स्त्री सशक्तीकरण के लिए ज़रूरी है कि हम “पिंक फेमिनिज्म” से ऊपर उठकर “ग्रासरूट फेमिनिज्म” को अपनाएं. केवल ग्लैमर और प्रतीकात्मकता से आगे बढ़कर, महिलाओं की वास्तविक समस्याओं को हल करने पर ध्यान देना होगा. जब महिलाएं जमीनी स्तर पर सशक्त होंगी, तभी समाज में समग्र रूप से परिवर्तन होगा.” उन्होंने कहा कि स्त्री सशक्तीकरण का असली अर्थ तभी पूरा होता है जब महिला खुद अपनी आवाज़ को पहचानें, अपने अधिकारों के लिए खड़ी हों और आत्मनिर्भर बनने का प्रयास करें. बाहरी सहायता केवल प्रारंभिक चरण में सहायक हो सकती है, लेकिन सशक्तीकरण की जड़ें महिला के भीतर से ही विकसित होती हैं.
स्त्री का सशक्तीकरण बाहरी रूप से थोपा जाने वाला बदलाव नहीं है. यह एक आत्मनिर्भर, आत्म-जागरूक और आत्मसम्मानित प्रक्रिया है. जब स्त्री अपने अधिकारों और शक्ति को पहचानकर अन्याय का मुखर होकर प्रतिरोध करती है, तभी वह वास्तविक सशक्तीकरण की ओर बढ़ती है. स्त्री का सशक्त होना उसके आत्मबल, स्वाभिमान और संघर्ष से जुड़ा हुआ है, और यही उसकी असली शक्ति है. स्त्री की संवेदनशीलता पुरुषों से कहीं ज़्यादा है और यही उसकी बड़ी शक्ति है. एक गर्भवती स्त्री सब कुछ छोड़ सकती है लेकिन अपने दूधमुँहें बच्चे को नहीं छोड़ सकती और यहीं उसे समझौते करने पड़ते हैं.