प्रेम लघुकथा नहीं एक जीवन है 

प्रेम लघुकथा नहीं एक जीवन है 

Ananya soch

अनन्य सोच। “स्त्री प्रेम में एक उपन्यास होना चाहती है, पुरुष बस एक कहानी” तसनीम ख़ान का उपन्यास “हमनवाई न थी” इस बात की बारहा याद दिलाता रहा है.

सनम, शिवेन और रवीश इसके पात्र नहीं , हमारे समय की प्रवृत्तियाँ हैं. लौंग डिस्टेंस रिलेशनशिप इस समय की विवशता है जहां हर कोई अपनी जड़ों तक महदूद नहीं रहता, इन्हें काटकर मोम के पंख लगाकर सूरज को छूना चाहता है.” यह कहना है वरिष्ठ साहित्यकार मनीषा कुलश्रेष्ठ का जो आज डॉ राधाकृष्णन पुस्तकालय में प्रगतिशील लेखक संघ द्वारा आयोजित तसनीम ख़ान के उपन्यास “हमनवाई न थी” के लोकार्पण में मुख्य अतिथि थी. उन्होंने कहा कि तसनीम कहानियों में शिल्प और ढाँचें को लेकर सहज और मौलिक रहती है. उपन्यास में उन्होंने शिल्प को कथानक के तरल में बहने दिया है. घटनाक्रम उत्तरोत्तर चलता है , कहानी बढ़ती है और द्वन्द पर आकर एक जगह ख़त्म हो जाती है लेकिन साथ रह जाता है डीडवाना का परिवेश, फ़ौजी जीवन की कठिनाइयाँ, सनम का अंतर्द्वंद और मज़बूत निर्णय. इसलिए सरल शिल्प के साथ भी उपन्यास गूँजती हुई ध्वनियाँ छोड़ जाता है, कुछ ज़िंदा दृश्य भी , यही उपन्यास की सफलता है.

इस अवसर पर वरिष्ठ साहित्यकार डॉ हेतु भारद्वाज ने कहा कि तसनीम ख़ान ने प्रेम के बहाने जीवन के द्वन्द को रचा है. इस कहानी में संबंधों के निर्वाह की समस्या है. नई तकनीक और चैटिंग जैसी सुविधाएँ रिश्तों में बाधा डाल रही है. सोशल मीडिया का तूफ़ान रिश्तों को ग़लत दिशा में ले जा रहा है. तसनीम की सबसे बड़ी सफलता यही है कि उसने ज़िंदगी के छोर को नहीं छोड़ा है. उसने समय की नब्ज़ को पकड़ा है. वरिष्ठ आलोचक राजाराम भादू का कहना था कि तसनीम के पास दृश्यों को रचने की एक समृद्ध भाषा है. कथाकार चरण सिंह पथिक ने कहा कि तसनीम का उपन्यास आंतरिकता में लिपटी हुई एक प्रेम कहानी है जिसमें भाषा, परिवेश, तड़प,बैचेनी सब शब्दों से ज़ाहिर होती है. उनका कहना था कि प्रेम कहानी असफल होती है तभी प्रसिद्ध होती है क्योंकि सफल प्रेम कहानी तो रिश्ता बन जाती है. वो प्रेम ही क्या जिसमें टीस न हो.

कार्यक्रम का संचालन डॉ अजय अनुरागी ने किया। इस अवसर पर शहर के अनेक लेखक उपस्थित थे.