Jaipur literature festival: हर महत्वाकांक्षी मन अशोक होता है - यतींद्र मिश्र 

नवल पांडेय।

Jaipur literature festival: हर महत्वाकांक्षी मन अशोक होता है - यतींद्र मिश्र 

Ananya soch: Jaipur literature festival

अनन्य सोच। Jaipur literature festival: कवि , लेखक , संगीत-सिनेमा स्कॉलर और संपादक यतींद्र मिश्र का कहना है कि कविता मेरा पहला प्यार है. कविता एक ऐसी विधा है जिसमें वह सब कुछ कहा जा सकता है जो हम कहना चाहते हैं. हर कविता एक उपन्यास भी है. कविता एक ऐसे इत्र की तरह है जिसकी शीशी में से इत्र उड़ भी जाए तब भी महक उसमें बाक़ी रह जाती है.


यतीन्द्र मिश्र आज जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में अपने नए कविता संग्रह “बिना कलिंग विजय के” पर आधारित इसी शीर्षक के सत्र में पत्रकार प्रज्ञा तिवारी के साथ संवाद कर रहे थे. उन्होंने कहा कि मेरा बचपन भक्ति कविताएँ सुनते हुए गुजरा है। हमारे भक्ति संगीत में इतनी शक्ति है कि आज मीरा और नरसी को हुए पाँच सौ साल गुजर गए हैं लेकिन उनके भजन “वैष्णव जन तो तेने कहिए” और “पायोजी मैंने राम रतन धन पायो” आज भी लोक में प्रचलित है. उनका कहना था कि कोई कवि या कविता इसलिए महान या बड़ी नहीं होती कि वह किसी फेस्टिवल में सुनी जाये या उसे किसी बड़े पुरस्कार से सम्मानित किया जाए. आम आदमी के लिए लिखी गई कविता जिसे हर कोई आसानी से समझ ले , वही बड़ी कविता होती है. जो लोगों से कनेक्ट हो जाए और शरणागत में आए व्यक्ति को दुःख से उभरने का मौका दे, वही सच्ची और अच्छी कविता है । जो कविता आपके अकेलेपन को दूर करना सिखा दे, कविता वही होती है। तुलसी , मीर, कबीर, गुलज़ार की रचनाओं में यह ताक़त है. 
आज के दौर की कविताओं की बात करते हुए उन्होंने कहा कि आजकल नारा बन चुकी कविताएँ लिखी जा रही है. कविता को इतना टिपिकल मत बनाओ। कविता को रस की तरह लिखना चाहिए. तुलसीदास की एक चौपाई का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि गाँव -देहात में अनपढ़ किसान जब बरसात के आने में देर हो जाती है और खेती सूखने लगती हैं तो कहते हैं “का बरसा जब कृषि सुखाने”. अब उन्हें यह बिल्कुल पता नहीं है कि यह तुलसीदास जी ने रामचरित मानस के बालकाण्ड में सीता स्वयंवर के समय कहीं है लेकिन कविता की शक्ति यह है कि वो अंचल में कहावत की तरह प्रचलित हो जाये. 
यतीन्द्र ने कहा कि आज हमारे युवा और बच्चे रील्स में फँसे हुए हर दो मिनिट में मोबाइल को हाथ में लेकर उसे देखना सबकी आदत बन गई है. हम घंटों सोशल मीडिया पर अपना समय व्यतीत कर रहें हैं. ऐसी आदतों से बचने के लिए हमें पढ़ने की आदत विकसित करनी होगी. 
यतींद्र का यह कविता संग्रह बारह साल बाद साया हुआ है. इस देरी की वजह बताते हुए उन्होंने कहा कि मेरा पहला प्यार तो कविता ही है  लेकिन इस दौरान संगीत पर कुछ काम किया और फिर गिरिजा देवी, बिस्मिल्लाह ख़ान, अक्का महादेवी पर किया काम लोगों को पसंद आया तो लगा कि इसी क्षेत्र में काम किया जावे. लता मंगेशकर की जीवनी “लता सुर गाथा” की कामयाबी के बाद तो लोकप्रियता का एक चस्खा सा लग गया। यह किसी फिल्मकार की एक बड़ी कॉमर्शियल हिट की तरह आई। इसके बाद गुलज़ार साहब की जीवनी पर काम किया. अब फिर अपना पहला प्यार याद आया तो यह किताब बन गई. 
“बिना कलिंग विजय के” संग्रह में कुल सौ कविताएँ संग्रहित है जिनका चयन पुस्तक के संपादकद्वय आशुतोष दुबे और अम्बर पांडेय ने किया है. मुझे ख़ुशी है कि भग्नावशेषों को देखने का जो मेरा टोन है, किताब में उसके साथ न्याय हुआ है. कविताओं को किताबबद्ध करना बहुत मुश्किल काम है। मैंने इस संग्रह के लिए सैंकड़ों कविताओं को रिजेक्ट किया है. गुलज़ार साहब कहते हैं किसी शायर का अच्छा काम देखना है तो उसके डस्टबिन में देखना चाहिए. 
उन्होंने कहा कि मैं श्रेष्ठ लिखना पसंद करता हूँ. आप भी वो लिखें जो आपको पसंद हो जिन पर आपका विश्वास हो. प्रकाशित करने से पहले ख़ुद जाँच लेना चाहिए कि आप स्वयं अपनी रचना से सम्मोहित हुए कि नहीं. ध्यान रखना ख़राब कविता लिखने वाला अपनी रचना सुनाने को ज़्यादा तैयार रहते हैं ठीक वैसे ही जैसे बेसुरे लोग ज़्यादा गाते हैं. उन्होंने कहा कि मैं अपनी कविताएँ कुछ प्रूव करने के लिए नहीं लिखता बल्कि कविता लिखनी है इसलिए लिखता हूँ. 
“माँ” का जिक्र करते हुए यतींद्र ने कहा कि हाल ही मैंने मेरी माँ को खोया है। मैं अपनी माँ के बहुत नज़दीक था. मैंने इस घटना को शोक व दुख की जगह सेलिब्रेट किया है. माँ की अनुपस्थिति को मैंने अपनी कविता में जिया है। इस संग्रह का एक पूरा खंड माँ पर जिसमें पंद्रह कविताएँ हैं. ये कविताएँ मैंने अपनी माँ के लिए लिखी है, वे जहाँ भी होंगी इन्हें पढ़ रही होंगीं। यह मेरी माँ को श्रद्धांजलि है. उन्होंने उपस्थित युवाओं से कहा कि मैं अपनी माँ को बहुत प्यार करता हूँ और उन्हें खोकर उदास हूँ. मैं जानता हूँ कि माँ बाप हमेशा के लिए नहीं होते लेकिन आपके पेरेंट्स जितने दिन आपके साथ रहें , अच्छा है. उन्होंने कहा कि अपने प्रियजनों को उनके जाने के बाद भुला देना प्रेम नहीं है. दुःख वह नहीं है जिसे आप भुला दें बल्कि आपने उन्हें बिसरा दिया तो मतलब आपने उन्हें प्रेम किया ही नहीं। उन्होंने कहा कि मैं चाहता हूँ कि हर जन्म में वो ही मेरी माँ बने. मैं हर जन्म में उनकी ही कोख से जन्म लेना चाहता हूँ भले ही इसे आप मेरा हिन्दुवादी नज़रिया कहे या सनातनी सोच लेकिन अपनी माँ के दिए संस्कार के कारण ही मैं उनसे कनेक्ट रहता हूँ. 
माँ से अपने रिश्ते की अहमियत को बताते हुए यतीन्द्र ने कहा कि मैं जब भी घर से बाहर किसी दूसरे शहर में जाता था तो उस शहर के बाज़ार से माँ के लिए उनकी पसंद की चीज़ें जैसे सुरमा , चूड़ी , बिंदी, परांदे, लहरिया , पचरंगी, चुनरी आदि ज़रूर लेकर आता था और इसके लिए कई बार मुझे आठ आठ घंटे भी दुकानों पर बैठने पड़ते थे लेकिन मेरी इछा रहती थी कि मैं अपनी माँ के लिए उनकी पसंद की कोई चीज़ लेकर जाऊँ । जबकि मेरी माँ ज़्यादा मेकअप नहीं करती थी. मैं अपनी माँ के लिए दुनिया की हर चीज़ ख़रीदकर लाना चाहता था. यहाँ तक कि जामुन और अमरूद जो मेरे शहर अयोध्या में भी मिल जाते है लेकिन मैं अपनी माँ के लिए आगरा , बंगलौर और इलाहबाद के अमरूद और जामुन लेकर आता था. 
इतिहास को अप्रिय विषय बताने के सवाल पर उन्होंने युवाओं से कहा कि अपना कैनवास थोड़ा बड़ा करें. अपने पंख खोलें। हिस्ट्री डेड सब्जेक्ट नहीं है.