"बगिया बांछाराम की"  में प्रकृति प्रेम व जीने की इच्छा शक्ति का चित्रण

"बगिया बांछाराम की"  में प्रकृति प्रेम व जीने की इच्छा शक्ति का चित्रण

अनन्य सोच, जयपुर। कला, साहित्य, संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग तथा रवींद्र मंच की टैगोर थिएटर योजना श्रृंखला के अंतर्गत शुक्रवार को नाटक "बगिया बांछाराम की"  का मंचन किया गया । नाटक के लेखक मनोज मित्र एवं निर्देशन वरिष्ठ रंगकर्मी राम सहाय पारीक ने किया। नाटक में एक गरीब वृद्ध किसान बांछाराम की धरती के प्रेम और संघर्ष की कहानी को दिखाया गया। बांछाराम ने उम्र भर मेहनत करके अपनी बगिया को संजोए रखा। वह महज आजीविका के लिए पेड़ पौधे नहीं  उगाता बल्कि धरती के प्रति श्रद्धा व प्रेम उनकी मेहनत के मूल में छपी है । इस हरे भरे बाग को कई लोग हड़पना चाहते हैं गांव का पूर्व जमीदार  छकोडी  इसी बाग की आस मन मे लिए मर गया और अब भूत बनकर इसी बाग में रहता है उसका बेटा नाकोड़ी अपने सहयोगी मुख्तियार के साथ बगीचे को हथियाने की नित्य नई साजिश रचता है । इस नाटक में जहां एक ओर बांछाराम के प्रकृति प्रेम व जीने की इच्छा शक्ति का चित्रण हैं। वहीं दूसरी ओर सामंतवादी  दुष्चक्र व धरती को व्यापार का साधन बनाने की मानसिकता एवं उपभोगवादी संस्कृति परिलक्षित होती है । इस पूरे कथानक को लेखक ने बहुत सुंदरता से हास्य के ताने बाने से बुना है।

नाटक में  अनीस कुरैशी, राजीव अंकित, सुरेश मोहन, राम सहाय पारीक, धनेश, देव सागर, राहुल मोदानी,युवराज सिंह भाटी, युथिका नागर, दिलीप सिंह, कमलेश वर्मा, चंचल शर्मा ने सशक्त अभिनय किया।