Jaipur Literature Festival: फिल्मों में बदलाव की बहार :सत्तर के दशक का हिंदी सिनेमा
Nawal sharma
Ananya soch: Jaipur Literature Festival
अनन्य सोच। Jaipur Literature Festival: जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल (Jaipur Literature Festival) में आज शाम का एक सत्र hindi cinema के नाम रहा, जिसमें सत्तर के दशक में हिंदी सिनेमा में हुए बदलावों पर निर्माता निर्देशक विशाल भारद्वाज (Producer Director Vishal Bhardwaj) , निरुपमा कोटरू व जय अर्जुन सिंह ने चर्चा की. सत्र की शुरुआत में लेखक जय अर्जुन सिंह ने कहा कि सत्तर का दशक हिंदी सिनेमा में बदलाव का एक महत्वपूर्ण समय था. इस दौरान मुख्यधारा के सिनेमा में कई परिवर्तन हुए. पहले राजेश खन्ना का रोमांटिक फिल्मों का दौर आया, जिसे सलीम जावेद ने अमिताभ बच्चन के रूप में एंग्री यंग मैन के रूप में पेशकर एक बड़ा परिवर्तन ला दिया. नायक को महानायक बनाने का यही दौर था. नायक लार्जर देन लाइफ की नई उपमा के साथ पर्दे पर समाज की सारी बुराइयों का नाश करता दिखाई दिया. दूसरी ओर श्याम बेनेगल, शबाना आजमी, नसीरुद्दीन शाह, ओमपुरी आदि ने पैरेलल सिनेमा या आर्ट सिनेमा के रूप में एक नया आंदोलन खड़ा किया. इनके बीच गुलजार, ऋषिकेश मुखर्जी, बासु चटर्जी आदि ने मिडिल सिनेमा की नई राह तैयार कर दी.
Vishal Bhardwaj ने बताया कि सत्तर के दशक के हिंदी सिनेमा ने मुझे बहुत प्रभावित किया क्योंकि उस समय मनोरंजन का अन्य कोई विकल्प नहीं था. सिर्फ थियेटर और हिंदी फिल्में ही देखने को मिलती थी. यह वो दौर था जब दर्शक फिल्मों के नायक के संवाद रट लिया करते थे. शोले तो डायलॉग के दम पर ही हिट हुई थी. amitabh bachchan, Shatrughan Sinha और vinod khanna के डायलॉग फिल्म को सफल बनाने की गारंटी बन जाते थे. कुछ फिल्मों गानों के दम पर भी हिट हों जाती थी. खासकर गुलजार साहब की फिल्मों को देख लीजिए.