फुलेरा दूज एक मार्च को

फुलेरा दूज एक मार्च को

Ananya soch: Phulera Dooj on 1st March

अनन्य सोच।  फाल्गुन शुल्क द्वितीया शनिवार एक मार्च फुलेरा दूज के रूप में मनाई जाएगी. इसे होली के आगमन के प्रतीक के रूप में मनाया जाएगा। इस दिन से गांवों में होली की तैयारियां शुरू हो जाती हैं. जिस स्थान पर होली सजाई जाती है, वहां प्रतीकात्मक रूप में उपले या लकड़ी रखी जाती है. कई जगहों पर इसे उत्सव की तरह मनाया जाता है. इस दिन से लोग होली में चढ़ाने के लिए गोबर की गुलरियां भी बनाते हैं. ज्योतिषाचार्य डॉ. महेंद्र मिश्रा ने बताया कि वैदिक पंचांग के अनुसार फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि 1 मार्च को रात 3:16 बजे से शुरू होगी. यह अगले दिन 2 मार्च को रात 12:09 बजे तक रहेगी. सनातन धर्म में उदया तिथि का विशेष महत्व होता है, इसलिए 1 मार्च को फुलेरा दूज मनाई जाएगी. फुलेरा दूज को अबूझ मुहूर्त माना जाता है. इस दिन विवाह के लिए किसी ज्योतिषीय गणना की आवश्यकता नहीं होती. इस दिन बिना मुहूर्त देखे विवाह और अन्य मांगलिक कार्य किए जा सकते हैं. इसी कारण इस दिन बड़ी संख्या में शादियां होगी. मान्यता है कि इस दिन विवाह करने से दंपती को भगवान कृष्ण का आशीर्वाद प्राप्त होता है. इसे शादियों के सीजन का अंतिम दिन भी माना जाता है. इस दिन रिकॉर्ड संख्या में विवाह संपन्न होते हैं। दूसरी ओर फुलेरा दूज का अर्थ फूलों से जुड़ा है. मान्यता है कि इस दिन भगवान कृष्ण फूलों के साथ होली खेलते हैं और इस पर्व में भाग लेते हैं. इस दिन भगवान कृष्ण और राधा की पूजा करने से वैवाहिक जीवन में प्रेम और सुख-समृद्धि आती है. 

इसी दिन श्रीकृष्ण वृंदावन गए थे, की गई थी पुष्पवर्षा

ब्रज क्षेत्र में इस दिन विशेष उत्सव होते हैं। मंदिरों को फूलों और रोशनी से सजाया जाता है. भगवान कृष्ण की मूर्ति को रंगीन मंडप में रखा जाता है. भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति की कमर पर रंगीन कपड़ा बांधा जाता है, जो यह दर्शाता है कि वे होली खेलने के लिए तैयार हैं. ये पर्व मूल रूप से ब्रज से ही आया है। पौराणिक महत्व इस दूज का मान्यता है कि कृष्ण कई दिनों तक वृंदावन नहीं गए थे, जिससे राधा दुखी हो गई थीं. उनके उदास होने से मथुरा के वन सूखने लगे। जब कृष्ण को इसका पता चला तो वे राधा से मिलने पहुंचे. उनके आते ही चारों ओर हरियाली छा गई. कृष्ण ने राधा पर फूल फेंका, राधा ने भी ऐसा ही किया. यह देखकर ग्वाले और गोपियां भी फूल बरसाने लगे. तभी से मथुरा में फूलों की होली खेलने की परंपरा शुरू हुई। फुलेरा दूज का यह पर्व खुशियों और उल्लास का प्रतीक है. इस दिन बिना किसी बाधा के विवाह और अन्य शुभ कार्य किए जा सकते हैं.