कड़ा अनुशासन ही नाटक की धुरी है

Rajasthan forum: राजस्थान फोरम की ‘डेज़र्ट सोल्स’ सीरीज़ में प्रणय भारद्वाज के सवालों पर सौरभ श्रीवास्तव ने दिए कई सार्थक जवाब और साझा किए अपनी रचनात्मक यात्रा के रोचक पड़ाव

कड़ा अनुशासन ही नाटक की धुरी है

Ananya soch: Rajasthan forum

अनन्य सोच। Rajasthan forum: राजस्थान में प्रशासनिक और पुलिस सेवा के कई अधिकारी ऐसे हैं जिन्होंने अपनी पेशाई व्यस्तताओं के बावजूद संगीत, रंगमंच, साहित्य और कला के विविध रूपों में अपनी असाधारण प्रतिभा से इस क्षेत्र में भी अपनी खासी पहचान बनाई है. इन्हीं में से एक हैं भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी सौरभ श्रीवास्तव जिन्होंने पुलिस जैसी दुरूह सेवा में व्यस्त रहने के बावजूद रंगमंच में भी अपनी असाधारण प्रतिभा से नाट्य जगत का ध्यान अपनी ओर खींचा है . इन्हीं सौरभ श्रीवास्तव  की तीन दशक से भी अधिक की पुलिस और रंगमंचीय यात्रा से रूबरू करवाने के लिए गुरुवार को राजस्थान फोरम की ओर से ’डेज़र्ट सोल्स’ टॉक शो का आयोजन किया गया. होटल आई.टी.सी राजपूताना में आयोजित इस शो में जाने माने उद्घोषक प्रणय भारद्वाज ने विभिन्न रोचक और ज्ञानवर्धक सवालों के जरिए सौरभ श्रीवास्तव के रंगमंचीय और पुलिस सेवा के तीन दशक से भी अधिक के मिले जुले सफर को जीवंत किया. 

डेज़र्ट सोल्स सीरीज़ राजस्थान फोरम की पहल है, जिसका आयोजन आईटीसी राजपूताना के सहयोग से किया जाता है, एवं ये सीरीज श्री सीमेंट के सीएसआर इनिशिएटिव के तहत सपोर्टेड है. इस सीरीज़ में राजस्थान की उन हस्तियों के कृतित्व पर चर्चा की जाती है जिन्होंने राजस्थान में ही रहकर उल्लेखनीय कार्य किया है.

प्रणय भारद्वाज से बातचीत में सौरभ ने कहा प्रशासनिक सेवाओं से पहले मैंने कई साल थिएटर किया हैं. काशी में जन्म होने के बाद प्रारंभिक शिक्षा यही प्रारंभ हुई. पिता बनारस हिंदी यूनिवर्सिटी में ही लॉ के प्रोफेसर रहें, बाद में उनका तबादला कानपुर हुआ. आगे की पढ़ाई रामकृष्ण मिशन यूनिवर्सिटी से शुरू हुई और जीवन का बीज मंत्र मुझे यही मिला कि 'नर ही नारायण' हैं. उसके बाद इलाहाबाद से इतिहास पर शोध किया। थिएटर की शुरुआती यहीं से हुई. बी.वी कसलाकर थिएटर के पहले गुरु रहे. बाद में सचिन तिवारी के साथ 1982 से 1987 तक काम किया। यहां हर साल नाटकिय  कुंभ लगा करता था जिसमें पूरे भारत से  रंगकर्मी भाग लेते थे. 

नाटक का निर्देशक कभी अभिनेताओं का मित्र नहीं होता

किसी भी नाटक के लिए कड़े अनुशासन की जरूरत होती हैं. 
नाटक में अभिनय करने वालों को निर्देशक कड़े निर्देश के साथ ही अभिनय करवा सकता है, एक निर्देशक के साथ अभिनेता की दोस्ती बहुत मुश्किल होती हैं कम से कम उस वक्त तक जब वे साथ काम कर रहे हो. 


थिएटर से मैंने सुकून और आनंद पाया

सौरभ ने बताया की थिएटर करते हुए मुझे हमेशा ही आनंद आया. जीवन का सुकून मुझे थिएटर से ही मिला.उन्होंने बताया की इलाहाबाद में  सुष्मिता शाह के साथ कई बार नाटक किये और अब जीवन में भी वो मेरी संगनी हैं. 

हिंदी थिएटर सिर्फ जुनून के दम पर चल रहा है

सौरभ श्रीवास्तव ने बताया कि प्रशासनिक सेवा में रहते हुए लगा नहीं कि फिर शायद ही कभी थिएटर करूंगा पर थिएटर की मेरी दूसरी पारी जयपुर से शुरू हुई. उन्होंने कहा हिंदी थिएटर सिर्फ और सिर्फ जुनून के दम पर चल रहा हैं. क्योंकि ना तो उनके पास साधन होते है और ना ही सरकारी और सामाजिक संरक्षण. जयपुर में आज भी जयरंगम जैसे रंगमंच पर दर्शक निमंत्रण पर आते हैं, जबकि मेरी शुरुआती दिनों में इलाहाबाद में हम नाटक के लिए टिकट बेचा करते थे. 

राजस्थानियों में कानून के प्रति बहुत सम्मान हैं

सौरभ श्रीवास्तव ने बताया कि प्रशासनिक सेवा में आने के बाद सबसे पहले जोधपुर और बीकानेर से ट्रेनिंग शुरू हुई.उन्होंने कहा राजधानियों में कानून के प्रति बहुत सम्मान है जिससे हमारा काम और भी आसान हो जाता हैं. अक्सर फील्ड में रहने की वजह से ही थिएटर को समय नहीं दे पाया पर चाहे जॉब में रहा या  रंगमंच किया मैंने अपना पूरा मन वही लगाया. 

इससे पूर्व राजस्थान फोरम के सदस्य संजय कौशिक ने कार्यक्रम में आए अतिथियों और कलाकारों का अभिनंदन किया. टॉक शो में मौजूद पद्मश्री तिलक गीताई और नंद भारद्वाज ने सौरभ श्रीवास्तव को स्मृति चिन्ह भेंट कर फोरम की ओर से उनका अभिनंदन किया.इस मौके पर राजस्थान फोरम के सदस्य पद्मश्री तिलक गीताई,डॉ मधुभट्ट तैंलग, नंद भारद्वाज, डॉ प्रदीप चतुर्वेदी और सांस्कृतिक समन्वयक सर्वेश भट्ट सहित शहर के कई संस्कृति प्रेमी भी मौजूद थे.