अपने ही थे घर लूटने वाले, अच्छा हुआ मैंने ये तमाशा नहीं देखा.. जैसे शेरों से गुंजा बाग

अपने ही थे घर लूटने वाले, अच्छा हुआ मैंने ये तमाशा नहीं देखा.. जैसे शेरों से गुंजा बाग

अविनाश

अनन्य सोच जोधपुर।अपने ही थे घर लूटने वाले, अच्छा हुआ मैंने ये तमाशा नहीं देखा...जैसे शेर की गूंज से ये बाग तालियों की गड़गड़ाहट से गुंज गया। ये सब देखने को मिला जोधपुर के उम्मेद उद्यान के जनाना बाग में आयोजित हो रहे साहित्य उत्सव के पहले दिन का। साहित्य उत्सव के पहले दिन बड़ी संख्या में कला एवं साहित्य प्रेमी उम्मेद उद्यान के जनाना बाग में पहुंचे। कवि सम्मेलन को लेकर कला प्रेमियों का उत्साह देखते ही बना। मीरा बाई मुख्य सभागार श्रोताओं से खचाचख भरा रहा, कवि सम्मेलन का श्रोताओं ने भरपूर आनंद लिया। डॉ. कुमार विश्वास ने इस कवि सम्मेलन का संचालन किया। काव्य जगत के पुरोधाओं ने साम्प्रदायिक सौहार्द, प्रेम, देशभक्ति, समृद्ध राजस्थानी संस्कृति, भाषायी सौंदर्य और व्यंग्य से जुड़ी रचनाएं प्रस्तुत की। सम्मेलन में डॉ. प्रभा ठाकुर, इकराम राजस्थानी, सम्पत सरल, डॉ. आईदान सिंह भाटी, दुर्गादान सिंह एवं जगदीश सिंह सोलंकी ने अपनी कविताओं से सम्मेलन में चार चांद लगा दिए।

डॉ. कुमार विश्वास ने मुस्कुराती जिंदगानी चाहिए, शब्द की जागृत कहानी चाहिए, सारी दुनिया अपनी हो जाती है, बस एक उसकी मेहरबानी चाहिए.. कहकर खूब दाद बटोंरी। उन्होंने मंच संचालक के दौरान सुनते हैं कि अपने ही थे घर लूटने वाले, अच्छा हुआ मैंने ये तमाशा नहीं देखा...शेर के जरिए श्रोताओं को तालियां बजाने पर मजबूर कर दिया। वहीं कवि डॉ. आईदान सिंह भाटी ने राजस्थानी भाषा के लालित्य पर प्रकाश डाला। उन्होंने सिसकी-सिसकी इन सांसों में कैसे लगे पलीते हैं, लुटते छिपते इस इंसान के पीछे पागल चीते हैं, कहीं-कहीं पर चौराहों पर बुझती बाती है, मिल जाए तो याद दिलाना हम उनके मन मीते हैं। इकराम राजस्थानी जुड़ा इस देश की माटी से मेरा नाम रहता है, ये धरती राम की है, यहां इकराम रहता है... सुनाते हुए साम्प्रदायिक सौहार्द का संदेश दिया। 'उजाले पाने की खातिर वो मुट्ठी तानता भर है, जुबां से कुछ न बोले पर तिरंगा जानता सब है' सरीखी कविताओं के साथ जगदीश सोलंकी ने माहौल को देशभक्ति की भावना से भर दिया।