Rajasthan Forum's 'Desert Souls' series: राजस्थान फोरम की ‘डेज़र्ट सोल्स’ सीरीज़ में अपरा कुच्छल के सवालों पर रवीन्द्र उपाध्याय ने दिए कई सार्थक जवाब
Rajasthan Forum's 'Desert Souls' series:राजस्थानी भाषा को बचाना यहां के हर कलाकार की जिम्मेदारी करियर में आज भी कला का नंबर सबसे पीछे संगीत की कोई भाषा नहीं होती
Ananya soch: Rajasthan Forum's 'Desert Souls' series
अनन्य सोच, जयपुर। Rajasthan Forum's 'Desert Souls' series: बॉलीवुड प्लेबैक सिंगिंग में राजस्थान के कई कलाकारों का अच्छा योगदान रहा है. जयपुर के गायक रवीन्द्र उपाध्याय भी उन्हीं में से एक हैं जिन्होंने जयपुर में रहकर इस क्षेत्र में अपने बेहतरीन काम से पहचान बनाई है. इन्हीं रवीन्द्र उपाध्याय की लगभग तीन दशक की कला यात्रा से रूबरू करवाने के लिए मंगलवार को राजस्थान फोरम की ओर से ’डेज़र्ट सोल्स’ टॉक शो का आयोजन किया गया. होटल आई.टी.सी राजपूताना में आयोजित इस शो में राजस्थान फोरम की कार्यकारी सचिव और संस्कृतिकर्मी अपरा कुच्छल ने विभिन्न रोचक और ज्ञानवर्धक सवालों के जरिए उपाध्याय के सांगीतिक सफर को जीवंत किया.
डेज़र्ट सोल्स सीरीज़ राजस्थान फोरम की पहल है, जिसका आयोजन आईटीसी राजपूताना के सहयोग से किया जाता है, एवं ये सीरीज श्री सीमेंट के सीएसआर इनिशिएटिव के तहत सपोर्टेड है. इस सीरीज़ में राजस्थान की उन हस्तियों के कृतित्व पर चर्चा की जाती है जिन्होंने राजस्थान में ही रहकर उल्लेखनीय कार्य किया है.
-ऐसे चला रविंद्र की बातों का सिलसिला
कार्यक्रम की शुरुआत में "जय जय राजस्थान" गाना गाकर उपाध्याय ने रंग जमा दिया. उसके बाद तो हर सवाल के साथ अपनी आवाज का जादू चलाते रहें. सवाल जवाब के दौरान राजस्थान क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष वैभव गहलोत के सवाल पर दर्शक ठहाके लगाने से खुदको रोक नहीं सके. अपने सफर को साझा करते हुए उन्होंने बताया कि पिता न्यायिक अधिकारी रहे जिसके चलते बार-बार ट्रांसफर होता रहा. जयपुर से नागौर, नागौर से भरतपुर अलग-अलग जगह अलग-अलग भाषाओं और संगीत ने हमेशा ही प्रभावित किया. भाषा समझ नहीं आती थी लिरिक्स समझ नहीं आते थे पर संगीत सीधा दिल में उतरता चला जाता. संगीत की कोई भाषा नहीं होती.
-भारतीय लोग कला को आजीविका का साधन नहीं मानते
आज भी भारतीय लोग कला को आजीविका का साधन नहीं मानते कला का नंबर हमेशा सबसे पीछे ही रहा. सबसे पहले रोटी,कपड़ा और मकान इन जरूरत को पूरा करने के बाद ही लोग सोचते हैं की चलो अब कुछ गाना-बजाना हो जाए. किसी गुरु से कभी नहीं सीखा पर घर का माहौल ऐसा रहा कि सुरीला संगीत अक्सर बजता रहा. मां और बड़ी बहन को हमेशा गाते सुनता वहीं से संगीत मेरी अंतरात्मा में बसता चला गया. 1996 दर्शक संस्था की प्रतियोगिता जीतने के बाद पहली बार पेपर में फोटो छपा. उससे पहले तक कभी सोचा भी नहीं था कि सिंगर बनाकर अपनी पहचान कायम करूंगा. दोस्तों के साथ अक्सर 'अर्थ' और 'साथ-साथ' फिल्म के गाने सुनता और गुनगुनाता वहीं से छोटे-छोटे प्रोत्साहन मिलने शुरू हुए और उन्हीं से आज यहां तक पहुंच पाया. पत्नी माधुरी राजकीय सेवा में रही और यही मेरे लिए बैकअप रहा. तभी मैं अपनी सिंगिंग पर फोकस कर पाया.
-राजस्थानी भाषा को बचाना यहां की हर कलाकार की जिम्मेदारी
उन्होंने कहा राजस्थानी भाषा को बचाना हर राजस्थानी कलाकार की जिम्मेदारी हैं। सिर्फ मान्यता मिल जाने से ही राजस्थानी भाषा नहीं बचाई जा सकती. कहीं भी कोई भी लाइव प्रोग्राम क्यों ना हो मैं एक गाना राजस्थानी में जरूर गाता हूं.
इससे पूर्व राजस्थान फोरम के सदस्य संजय कौशिक ने कार्यक्रम में आए अतिथियों और कलाकारों का अभिनंदन किया. टॉक शो में मौजूद फोरम के सदस्य पद्मश्री शाकिर अली और पद्मश्री गुलाबो ने रवीन्द्र उपाध्याय को स्मृति चिन्ह भेंट कर फोरम की ओर से उनका अभिनंदन किया. इस मौके पर राजस्थान फोरम की सदस्य संगीता जुनेजा, डॉ प्रदीप चतुर्वेदी और सांस्कृतिक समन्वयक सर्वेश भट्ट सहित शहर के चुनिंदा संस्कृति प्रेमी भी मौजूद थे.