पाण्डुन के कड़े' गायन में भपंग के साथ गूंजा अभिमन्यु विवाह का किस्सा
राजस्थान दिवस पर जेकेके की ओर से आयोजन
अनन्य सोच, जयपुर। भपंग समेत मेवात क्षेत्र के प्रचलित वाद्य यंत्रों के साथ लुप्त हो रही पाण्डुन के कड़े गायन की प्रस्तुति का सुधी श्रोताओं ने आनंद लिया। जवाहर कला केन्द्र की ओर से राजस्थान दिवस के अवसर पर गुरुवार, 30 मार्च को यह आयोजन किया गया। इसमें गफरूद्दीन खान मेवाती व उनके साथियों ने प्रस्तुति दी।
'तू नवाज पे आए तो नवाज दे जमाना, रब तू करीम ही तो ठहरा तेरे कर्म का क्या ठिकाना', ईश्वर को यह दोहा समर्पित करते हुए गफरूद्दीन खान मेवाती व उनके साथियों ने भपंग वादन की शुरुआत की। 'दुनिया में बाबा देख ले हो रही है टर ही टर', भपंग की तान पर इस गीत को सुन श्रोता झूम उठे। उन्होंने भपंग के साथ अलबख्शी शैली में 'बारी सी उम्र में पिया मार गियो रे' भी सुनाया।
पाण्डुन के कड़े सुनने को श्रोता बहुत उत्सुक दिखायी दिए। गफरूद्दीन खान ने बताया कि पाण्डुन के कड़े से तात्पर्य है महाभारत के विभिन्न प्रसंगों को मेवाती शैली में गाना। गफरूद्दीन खान के नेतृत्व में मेवाती जोगी समुदाय के 18 कलाकारों ने जोगिया सारंगी, मेवाती चिकारा, ढोलक, नगाड़ा, भपंग, खंजरी, मेवाती अलगोजा, जोड़ी, लयकारी, मंजीरा जैसे वाद्ययंत्रों की संगत के साथ धानी शैली में पाण्डुन के कड़े का गायन किया। उन्होंने बैराठ प्रसंग में अभिमन्यु के विवाह का किस्सा सुनाया। 'तेरो माटी को हाथी बनो बाको दियो धकेल, जिनका भाई मरकना उनको जग में रोलो हांसी खेल' इसमें पांडवों के शौर्य का वर्णन करते हुए कहा गया है कि जिनके भाई बलशाली होते है उनके लिए हाथियों को धकेलना भी संभव है अर्थात बड़े से बड़े युद्ध उनके लिए खेल की तरह है। इसी तरह मेवाती भाषा में संगीतमय तरीके से यह प्रसंग पूरा किया गया। उन्होंने रतवाई गायन भी पेश किया।