“कौन था वो भारतीय खिलाड़ी, जिसके आउट होते ही टीवी-रेडियो की आवाज़ तक थम जाती थी?”

अविनाश। क्रिकेट के 100 साल के इतिहास में एक ऐसा भारतीय खिलाड़ी भी हुआ, जिसके आउट होते ही पूरे देश का माहौल बदल जाता था. टीवी की आवाज़ धीमी पड़ जाती, रेडियो के नॉब बंद हो जाते और दर्शकों के चेहरों पर एक साथ मायूसी उतर आती. लोग मैच देखने का जोश खो देते थे, जैसे खेल का असली मज़ा ही खत्म हो गया हो. आखिर कौन था वो खिलाड़ी, जिसकी एक विकेट से पूरे देश की सांसें रुक सी जाती थीं?

“कौन था वो भारतीय खिलाड़ी, जिसके आउट होते ही टीवी-रेडियो की आवाज़ तक थम जाती थी?”

Ananya soch: “Who was that Indian player, whose dismissal would make even the TV and radio noise stop?”

अनन्य सोच।  अगर क्रिकेट के 100 साल की कहानी को एक लाइन में समेटना हो, तो वो होगी—सचिन तेंदुलकर सिर्फ बल्लेबाज़ नहीं, राष्ट्रीय भावना थे. उनकी बल्लेबाज़ी शुरू होती ही नहीं थी, देश की धड़कनें भी तेज़ हो जाती थीं. लोग चाय भी तब बनाते थे, जब ओवर ब्रेक आता था—क्योंकि “सचिन बैटिंग कर रहे हैं” कोई मज़ाक नहीं था. 

 क्रेज़—जब सचिन क्रीज़ पर होते थे

  • घरों में रिमोट फ्रीज़

  • दुकानों में टीवी पर भीड़

  • रेडियो पर कमेंट्री का क्रेज़

  • मोहल्ले की गली क्रिकेट भी रुक जाती

  • लोग कहते—“पहले सचिन को खेलने दे, फिर कुछ भी कर लेंगे”

लेकिन जैसे ही सचिन आउट होते—

  • टीवी की आवाज़ आधी

  • रेडियो तुरंत बंद

  • चेहरों पर मायूसी और सिर्फ एक लाइन—
    “अब देखने लायक क्या बचा?”

90s और शुरुआती 2000s का दौर ऐसा था कि भारत का रनचेज़ सचिन के साथ जुड़ा होता था. कमेंटेटर तक कहते—
“सचिन आउट… भारत की उम्मीदों का आधा हिस्सा भी आउट.”

उनकी एक कवर ड्राइव पर पूरा देश झूम उठता था, और एक विकेट पर पूरा माहौल ठंडा पड़ जाता था. टीवी रेटिंग की ग्राफ लाइन सचिन की फॉर्मूला लाइन की तरह—क्रीज़ पर हों तो टॉप, आउट हों तो ड्रॉप. 

सचिन की लोकप्रियता ने यह अनोखा रिकॉर्ड बनाया कि उनके आउट होने का असर मैच पर नहीं, पूरे देश के मूड पर पड़ता था. दुनिया में शायद ही कोई और खिलाड़ी ऐसा भावनात्मक कनेक्शन बना पाया हो. 

आज भी क्रिकेट प्रेमी हंसते हुए कहते हैं—
“सचिन आउट हो गया तो मैच देखे कौन?”